Friday, April 24, 2015

बिहारी ने पंजाबन कमसिन की सील तोड़ी


दोस्तो, आज जो कहानी मैं आपको बताने जा रहा हूँ, यह मुझे एक महिला मित्र ने मेल करके अनुरोध किया था लिखकर पोस्ट करने को।
अब आगे कहानी सिमरनजीत कौर के शब्दों में:
दोस्तो, मेरा नाम सिमरनजीत कौर है, सभी प्यार से मुझे सिमी बुलाते हैं।
मैं पंजाब के मोगा जिले के एक छोटे गाँव से हूँ।
मेरी उम्र 19 साल है। मैंने +2 की है और अब घर के काम ही करती हूँ।
मेरे जिस्म का आकार है 32-28-34
दोस्तो, हमारे परिवार में पापा, मम्मी, दो भाई और दो बहन और मैं हूँ।
पापा और भाई खेती करते हैं, एक बहन बड़ी 21 साल और एक छोटी है 17 साल।
दोनों भाई बड़े हैं और पापा के साथ ही काम करते हैं।
तो दोस्तो, जैसा कि आप सभी जानते होंगे कि पंजाब में ज्यादातर बिहारियों को काम पर रखते हैं सभी।
ये लोग सस्ते में काम करते हैं।
तो हमारे यहाँ भी पापा ने दो बिहारी नौकरों को रखा हुआ है, दिनेश की उम्र 18, तो दूसरा रमेश 23 साल का है।
वो हमारे घर में पिछले कई सालों से काम कर रहे हैं।
जब मैं और मेरी बहने स्कूल जाती थी तो वो दोनों में से कोई एक हमें रोज स्कूल छोड़ने जाता था।
दिनेश का काम था रोज भैंसों का दोनों वक़्त दूध दुहना।
जब दिनेश दूध निकलता तो मेरी मम्मी मुझे उसके पास भेज देती थी  कि मैं देखूँ कि कहीं वो दूध में कुछ गड़बड़ तो नहीं करता।
इसलिए मैं वहाँ उसके पास खड़ी होकर देखा करती थी।
उस वक़्त दिनेश जानबूझकर सिर्फ नीचे एक लुंगी पहनकर रखता था और ऊपर कुछ नहीं पहनता था।
जब वो दूध निकालता था तो वो बीच बीच में मेरी तरफ देख के मुस्कराता था और फिर जब वो देखता मैं उसे देख रही हूँ तो बड़े प्यार से भैंस के थन को सहलाने लगता और फिर मेरे 32 साइज़ के मस्त स्तनों को घूरने लगता।
मुझे भी उसका इस तरह से घूरना अच्छा सा लगने लगा था।
मैं भी उसे देखकर धीरे से मुस्करा देती थी।
मेरे जिस्म में भी अजीब सी सरसराहट होने लगती थी।
सेक्स के प्यारे प्यारे ख्वाब पूरे बदन को रोमांचित कर देते थे।
कई दिन ऐसे ही चलता रहा।
अब मैंने नोट किया कि दिनेश मेरे आस पास रहने की कोशिश करता था।
एक दिन वो हमें स्कूल से लाने के लिए आया।
उसने साइकिल पर आगे मुझे बैठाया और पीछे बड़ी दी को।
क्योंकि छोटी बहन उस दिन नही आई थी।
रास्ते में मैंने देखा कि दिनेश जानबूझकर पैडल मारते वक़्त अपनी टांगों से मेरे चूतड़ों को रगड़ रहा था।
वो हौले हौले से अपने पैर से मेरे कूल्हों को सहला रहा था तो मुझे बहुत अच्छा लग रहा था।
मेरी कुंवारी चूत में खुजली सी होने लगी थी जैसे हजारों चीटियाँ रेंग रही हों।
बीच बीच में वो खड़े होकर साइकिल चलाने की कोशिश करता था। जिससे उसका तना हुआ लंड मेरी गाण्ड से छू रहा था।
पहली बार मुझे मेरी गाण्ड पर उसके लंड के एहसास ने बहुत ज्यादा उत्तेजित कर दिया था।
मैंने बीच में उसे मुड़कर देखा और उसे स्माइल की तो वो समझ गया कि मुझे भी अच्छा लग रहा है उसका यूँ छूना।
फिर शाम को जब वो दूध निकालने लगा तो मैंने उसे मुझको भी सिखाने को कहा।
तो वो तुरन्त मान गया और उसने मुझे अपने आगे बैठा लिया।
फिर मैंने भैंस के थनों को पकड़ा तो उसने मेरे हाथ को थामकर अपने हाथ में ले लिया और मेरे हाथों को भींचकर भैंस के थनों को दबाकर दूध निकालना सिखाने लगा।
उसका लंड फिर से खड़ा हो चुका था और सिर्फ लुंगी में था तो उसका लुंगी में उठा हुआ लंड मेरी कोमल नरम गाण्ड से टकराने लगा।
मुझे अपनी गांड में उसके लंड का यूँ रगड़ना अच्छा लग रहा था तो मैंने कोई विरोध नहीं किया बल्कि उसे स्माइल देने लगी।
जिससे उसकी हिम्मत बढ़ रही थी।
फिर ऐसे ही तीन चार दिन चलता रहा।
अब हम जब अकेले में मौका मिलता तो थोड़ी बातें करने लगे थे।
फिर एक दिन जबी वो दूध निकलना सिखा रहा था तो धीरे से उसने पीछे से एक हाथ से मेरा स्तन पकड़ लिया।
मुझे उसकी इस पहल का कब से इंतजार था।
तो मैंने भी उसे मना नहीं किया।
धीरे धीरे उसने कमीज के ऊपर से ही मेरे दोनों स्तनों को खूब मसला।
पीछे से उसका खड़ा लंड मेरे चूतड़ों में फंसा हुआ था।
लेकिन इतने में मम्मी की आवाज आई और हमें जाना पढ़ा।
लेकिन अब वो समझ गया था कि मैं भी पूरी तरह से तैयार हूँ।
और वो मेरे साथ सब कुछ कर सकता है।
4-5 दिनों बाद पापा कहीं बाहर गये थे दोनों भाइयों और रमेश के साथ खेत का समान लेने।
दोनों बहनें स्कूल गई थी लेकिन मैंने छुट्टी ले रखी थी।
जब मम्मी दिन में अपनी सहेली के गई स्वेटर बुनने के लिए तो मुझे पता था वो घंटे से पहले नहीं आएँगी।
दिनेश को पापा ने घर छोड़ा हुआ था भैंसों की रखवाली और कुछ और कामों के लिए।
उस दिन मैंने लोअर और टी शर्ट पहन रखी थी जिसमें मेरे 32 साइज़ के गोर कसे स्तन बाहर झाँक रहे थे।
मैं कमरे में अकेली थी।
मैंने दिनेश को बुलाया और कहा कि मुझे किसी कीड़े ने काट लिया है शायद कंधे पर… तो वो देखे।
वो समझ गया था कि आज इस मौके का फायदा उठाना है।
उसने पहले पीछे जाकर एक हाथ से मेरे कंधे की हल्की सी मालिश की, फिर पूछा- आराम लग रहा है?
तो मैंने कहा- हाँ… अच्छा लग रहा है।
तो वो मेरे कंधे पर चुम्बन करने लगा।
मेरे मुहँ से सिसकारियाँ निकलने लगी।
फिर वो दोनों हाथ पीछे से लाकर मेरे दोनों बूब्स दबाने लगा।
मैं भी पूरी तरह गर्म हो गई थी।
फिर उसने मेरी टीशर्ट निकाल दी और ब्रा भी उतार दी।
अब वो आगे की साइड आकर मेरे दोनों स्तनों को चूसने लगा।
फिर उसने मुझे बेड पर लिटा दिया और मेरी लोअर भी उतार दी।
मैंने पैंटी नहीं पहनी थी तो मैं पूरी तरह उसके सामने नंगी थी।
उसने फटाफट अपनी बनियान और लुंगी उतार दी।
उसका 6 इंच का काला फनफनाता लंड मेरे सामने था।
उसने मुझे चूसने को बोला तो पहले तो मैंने मना किया किन्तु फिर न जाने क्या सोचकर एक बार मुँह में लिया और दो तीन मिनट चूसा।
फिर वो फटाफट मेरे ऊपर लेट गया और मुझे चूमते हुए अपना लंड मेरी चूत पर सेट करके धक्का मारा।
उसका लंड का काफी हिस्सा मेरी चूत में समा गया और मेरी जान सी निकल गई।
मेरे मना करने पर भी वो हटा नही, बोला- बीबी जी, बस एक बार दर्द होगा, थोड़ा सा बर्दाश्त कर लो बस।
दो मिनट बाद वो फिर से धक्के मारने लगा।
फिर धीरे धीरे मुझे भी अच्छा सा लगना शुरू हो गया।
अब मैं भी उसका पूरा साथ दे रही थी।
दस मिनट की चुदाई के बाद वो मेरे अन्दर ही झड़ गया।
जब वो हटा तो देखा मेरी चूत से थोड़ा खून भी निकला हुआ था।
एक बिहारी मने एक कमसिन पंजाबन की सील तोड़ दी थी।
फिर हमने अपने कपड़े पहने और बिस्तर साफ़ किया।
आगे की कहानियों में मैं आपको बताऊँगी कि कैसे रमेश और दिनेश ने मिलकर हम तीनों बहनों को चोदा।
और ऐसी ही कहानी पंजाब के ज्यातर घरों में आज के वक़्त हो रही है।
आज बिहारी पंजाबियों के घरों की लड़कियों बहुओं के साथ कैसे कैसे सेक्स कर रहे हैं।
अंत में मैं आशिक राहुल जी का बहुत बहुत धन्यवाद करना चाहूँगी जिन्होंने मेरी कहानी को शब्द दिए और उसे पूरी गोपनीयता के साथ प्रकाशित करने में मेरी इतनी मदद की।
तो दोस्तो, कैसी लगी आपको सिमी की यह सच्ची कहानी?

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